Showing posts with label अर्चना. Show all posts
Showing posts with label अर्चना. Show all posts

Friday, June 13, 2008

अर्चना

यूं तो मुझे दोस्ती करना बहुत पसंद है और मैं बहुत बातूनी भी हूँ. जिसको मैंने एक बार अपना समझ लिए उसे मैं दिल से चाहती हूँ. मेरा दिल भी शीशे की तरह है. टूटता है उसमें किसी तरह मरहम लगा कर जोड़ लेती हूँ. मैं जब भी एक्कांत में बैठती हूँ तो मेरे मॅन में कई ख्याल आते हैं और वोह भी मेरी कल्पना को इस कदर पर देते हैं की जो लिखती हूँ मुझे नहीं लगता की वाकई में मैंने ही लिखा है !ऐसे ही सोचते सोचते कल मैं बरुंदे में बैठी थी . मुझे जागते हुए एक सपना आया की मैं एक सुनसां जगह पे हूँ और मैं किसी एक नए मित्र से दोस्ती करना छह रही हूँ. वो कौन है ये तो मुझे पता नहीं चला.

तभी मेरी कलम से कुछ ऐसी पंक्तियाँ निकली जो मैं लिखने जा रही हूँ. ये मैंने अपने बारे में बताते हुए लिखा है.





मैं हूँ अलबेली सी, चुलबुली सी,
दुनिया के इस मायाजाल से वाकिफ़ हो कर भी अनजान हूँ;
थोडी सी हैरान, थोडी से परेशान,मेरे पर लगे हैं मेरे साथ उड़ चलो;
मैं अपने कल्पना रुपी पर से तुम्हें इस दुनिया की सैर करूंगी;
मेरी रंगों से भरी इस दुनिया से तुम्हारी इस बेरंग से ज़िन्दगी में रंग भरने दो ....
मुझे अपनी व्यथा और पीडा से वाकिफ़ कराओ ,
मुझे अपने प्यार को अर्पण करने दो.
मेरा हाँथ थाम कर तो देखो .....
मुझे आजमा कर तो देखो....

मैं हूँ- तुम्हारी अर्चना !


ये वर्णन भी मेरी विचित्रता का एक उदाहरण है .ऐसे भी सपने देखा करती हूँ.