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Tuesday, June 3, 2008

........और मेरी आखें भर आईं

आज सुबह मैं यूँ ही अपने कमरे में बैठे अख़बार पढ़ रही थी और साथ में Big 92.7 FM पे , 'दिल से ' पिक्चर का गाना , ऐ अजनबी .. चल रहा था. बड़े सुकून से मैं ये गाना सुन रही थी. आज कल जमशेदपुर में दो FM का उद्घाटन हुआ है. एक है Big 92.7 FM और 93.5S FM. मेरे घर में सबका संगीत की तरफ काफी झुकाव है. पापा और मम्मी को काफी पसंद हैं गाने सुनना और मम्मी भी कभी कभी रसोईघर में काम करते करते- करते थोडा गुण -गुना लेती हैं. मैंने भी सोचा , यही मौका है, अभी FM भी आ गया है, क्यूँ ना एक रेडियो घर ले आउन .मेरे पास अपने स्कोलरशिप के पैसे थे और ये शायद मेरा बेस्ट गिफ्ट होगा मम्मी और पापा के लिए. तो मैं एक छोटा सा , स्पीकर वाला रेडियो ले आई और रसोईघर में लगा दिया.


मैंने अपनी माँ के लिए खासकर लिया था. मैं घर में अकेली लड़की हूँ और पढाई के लिए घर से बहार रहती हूँ. माँ भी मेरी तरह बातें करना काफी पसंद करती है और Tv भी नहीं देखती ज़्यादा क्यूंकि उनको ये रोज़ के सास - बहु वाली कहानियाँ अच्छी नहीं लगतीं . मैं जब तक साथ रहती हूँ तो दिन भर बातें होती हैं पर मेरे जाने के बाद पता नहीं बस अपने में ही रहती हैं. ऐसे ही 3 साल बीत गये. ऐसा मेरे घर में ही नहीं, हर उस माँ पर बीतता होगा जिनके बच्चे बाहार पढ़ते हैं या बाहार नौकरी करते हैं.



तो मैंने सोचा माँ का दिल बहलाने का सबसे अच्छा तारीका है, गाना सुनना. रसोईघर से फुरसत तो नहीं मिलत कि वे जाकर tv देखने बैठे, इसलिए FM सबसे अच्छी चीज़ सूझी मुझे. जब मैंने ये रसोईघर में रखा और दिन भर गाने चलाये तो घर में माहौल ही अलग था. मुझे तो गाने सुनना पसंद ही है और मैं तो लप्तोप में कभी भी चला ke सुन भी लेती हूँ पर मेरे मम्मी–पापा इतने खुश कभी नहीं दिखे. संगीत में इतनी ताकत होती है कि वो किसी का भी मॅन कर दे. हर भावना को व्यक्त करने के लिए एक गाना होता है.


वैसे ही आज सुबह गाना चल रहा था. ऐ अजनबी, जब ये ख़त्म हुआ तो माँ आई और बोली, “ अर्चू , तुम्हें बहुत बहुत थंक यू. कल तक तो मुझे नहीं पता नहीं चला पर आज सुबह से इतने अच्छे -अच्छे गाने बज रहे थे तो मुझे लगा कि कितने दिनों से मेरे कान इन गानों को सुनने के लिए तरस रहे थे. मुझे अब लग रहा है तुमने मेरे लिए कितनी कीमती चीज़ खरीदी है.” इतना उन्होने कहा और मुस्कुरा कर चली गयीं . मैंने पुछा ,“ अम्मा थंक यू क्यूँ बोल रही हो?” उन्होंने कहा, “ रख लो थंक यू, मेरा आर्शीवाद समझ कर.”


मैं और कुछ नहीं बोल सकी, बस मूक की तरह उसी शून्य में तान्कती रही जहाँ से माँ चली गयी और ………..मेरी आँखें भर आईं.