Sunday, July 27, 2008

नैना

रविवर का दिन था, मैन होस्टेल के अपने होस्टेल के कमरे मे थी. बहार तेज़ हवा चल रही थी. मन अशांत था. हवा में जो वेग और आक्रोश था वह मेरे मन में भी था. पढाई से मेरा मन ऊब चूका था. इतने में मेरी नज़र १९९९ की दिअरी की पड़ी. पन्ने पुराने लग रहे थे पर जिस तरह मैं एक-एक पन्ना पलट रही थी मनो आँखों के सामने एक चलचित्र के रूप में दिख रहे थे.

पहली बार जब मैंने उसे देखा तो कुछ अलग सा लगा. उन झील सी गहरी मासूम आखों में जो चमक थी मनो दुनिया तो की साड़ी चीज़ें उसमें जगमगा उठें. छरहरी सी, खलबली सी, खिलखिलाती हुई वह हाँथ में लिए दौते हुए आ रही थी की मुझसे वो टकराई. मैं मुड़कर गुस्से से उसे देखि क्यूंकि काफी जोर का धक्का लगा था पर उसकी आँखों में वो चमक देखकर मेरे मुख पे जो मुस्कान आई शायद ही वह किसी को देख कर आती. उसने कहा, " आइ ऍम सॉरी." मैं चुपचाप कड़ी देखती रही. इसके बाद न जाने हर दिन वह कहीं न कहीं मिल जाती थी. कभी कैंटीन में, कभी स्कूल गेट के पास, कभी ऑटो स्टैंड...... हर जगह उसकी एक झलक मुझे मिल जाती थी. एक रोज़ कुछ कॉपियां लेकर मेरे सामने से गुजरी. मैंने पूछा, " नाम क्या है तुम्हारा?" उसकी आँखें सब कुछ बयां कर रही थी. कोई दर नहीं था. ऐसा लगा मानो दुनिया पर उसका कब्ज़ा हो. यही तो मुझे उसकी ओर खींच लाई. उसने झट से कहा, "नैना". वह थी तो सिर्फ ग्यारह साल की पर मुखमंडल पर जो तेज़ था वह मैंने आज तक किसी में नहीं देखा था. मुझे उसमें एक अपनापन सा लगने लगा. कक्षा पांच में ही पढ़ती थी पर बातें बड़ी-बड़ी करती थी. किताबे अनगिनत पढ़ चुकी थी और घर में दादी माँ के उपदेश सुनकर नन्हे से दिमाग में ज्ञान का कोष इतना इकट्ठा कर रखा था मानो समुद्र में पानी भी कम पद जाए. उसकी आशावादी दृष्टिकोण से मैं बहुत प्रभावित थी.

नैना दिखने में ठीक ही थी. कद-काठी उम्र के हिसाब से सटीक थी. कंधे तक आने वाले काले मुलायम और बड़ी-बड़ी जिज्ञासु काली आँखें.

तीन महीने हो चले, हम दोनों के बीच जो रिश्ता कायम हो चला था वो अटूट था. शायद इश्वर को यह मंज़ूर नहीं था की नैना हमेशा खुश रहे. काले बादल आखिर किसकी ज़िन्दगी में नहीं आते. पिछले कुछ.. तीन सप्ताह से नैना स्कूल नहीं आ रही थी. मुझे लगा की यूँ ही बुखार होगा, पर जब कोई खबर नहीं मिली तो मैं उसके घर पहुंची. नौकर ने बताया, " वे सब सी.ऍम.सी वेल्लूर गए हैं. तीन सप्ताह बाद आयेंगे." कुछ सप्ताह बाद मैंने नैना को स्कूल में देखा. आज वह गुमसुम सी अपने बेंच पर बैठी हुई थी. मैं चुपके से गयी और उससे पूछा, " क्या हुआ नैना? वेल्लूर गयी थी?मुझे बताया नहीं.किसी की तबीयत ख़राब थी क्या?" मैं क्षण भर के लिए चुप हो गयी. नैना ने जवाब दिया, " कुछ नहीं, मेरी तबियत ठीक नहीं थी.बुखार हो गया."इतने में घंटी बज गई और मैं अपनी कक्षा की ओर चल पड़ी. मेरा मन न जाने क्यूँ उसके गहर की ओर खींचा चला जा रहा था. शाम को उसके घर हो ही आई. उसकी माँ ने दरवाज़ा खोला. मैंने पुछा, " नैना...घर पर है?" उन्होंने कहा, " आओ.. अच्छा हुआ तुम आ गई." मैंने हिम्मत बाँध कर पुछा, " कुछ गंभीर समस्या है क्या?नैना..... को लेकर क्या?" वे हिच्किचायीं ... "नैना.. को...." इतने बोलते ही उनका गला रुंध गया. मैं उत्सुक थी, जी मचल रहा था. " क्या हुआ?"हडबडा कर मैंने पुछा..... " नैना को... छोटी आंत का कैंसर है." इतना कह कर वे तो पड़ीं. मैं सन्न बैठे रही. हाँथ-पैर ठंडे पड़ गए. साहस बटोर कर मैंने पुछा, " कैसे.. कैसे... हुआ?" "हाँ, कुछ ही दिन पहले से वह जो खाती थी पाच नही रहा था, डॉक्टर को दिखाया तो कहा की छोटी अंत में कुछ गडबडी होगी इसलिए सी.ऍम.सी वेल्लूर में दिखा देते तो अच्छा होगा. सी.ऍम.सी में टेस्ट कराने के बाद डॉक्टरों ने ये कह दिया की नैना को छोटी आंत का कैंसर है. इसके लिए कीमोथेरपी की ज़रूरत थी क्यूंकि यह मलिग्ननत कैंसर था." इतना कह कर वे चुप हो गयीं.

मैंने नैना की आहट सुन कर पीछे मुड कर देखा. मेरी आँखें नम हो गई.
" रो क्यूँ रही हो दीदी?" नैना ने पुछा.
"अगर रोने से मैं ठीक हो जाउंगी तो कितना अच्छा होता न, " नैना ने भोली सी आवाज़ में कहा.
उसने मुझसे कहा, " मेरा एक काम करोगी दीदी? "
" हाँ.. हाँ.. बोलो..," मैंने उसे उत्तर दिया.
" तुम तो जानवर, पक्षी, मनुष्य के बारे में पढ़ती हो न.. तुम.. नही आप... मेरी बीमारी के बारे में पता कर के मुझे बताओ न प्लीस." में चुप रही.
एक नासमझ ने मुझसे माँगा भी तो क्या माँगा?
" क्यूँ रे.. पागल हो गई है क्या?"मैंने कहा.
उसने कहा, " नही मुझे अपनी बीमारी के बारे में जानना है".
"अच्छा ठीक है," मैंने आंहें भर कर कहा.

मैंने स्कूल में हमेशा उसका साथ दिया. रोजाना तो वह स्कूल नही आ पाती थी, पर कोशिश यही थी की पढ़ाई ढंग से हो सके. कीमोथीरापी रेडिएशन के चलते उसके बाल झड़ने लगे. शार्रीरिक दुर्बलता बढती जा रही थी. चार महीने बाद उसे वेल्लूर जाना पड़ा. इस बार चिकत्सकों ने उसके बाल कत्वदेने को कहा. नन्ही सी जान से यह बर्दाश नही हुआ. रो - रो कर बेहाल हो गई. घर से बहार निकलने का मन नही करता था. चाहे सोच जैसी भी हो पर थी तो वह एक चोटी सी बच्ची. काफ़ी ज़िद करने के बाद उसे विग दिलाया गया जो वह स्कूल पेहेनकर जाया करती थी. मैंने पहली बार उसकी आंखों में आंसूं देखा. सहानुभूति वाले शब्द भी कम पड़ गए. पता नही चला की मैं क्या बोलूं? इतना मालूम था की वह अपने अन्तिम दिन गिन रही है. उसका कुछ किया नही जा सकता था.मैं उसके साथ हँसी -खुशी रह लेती थी पर सदा मन में दुःख रहता था.

आँखें दब सी गई थीं. दुर्बलता बढ़ गई, खाना गले से नही उतरता था,घर पर ही रहने लगी थी. एक दिन कमजोरी के कारण ' नैना' सदा के लिए पंचतत्त्व में विलीन हो गई.

मोबाइल में कॉल आया... मैंने कॉल काट दिया. मेरी आंखों से आंसूं का एक बूँद पन्ने पर गिरा और स्याही फ़ैल गई. आंसूं पोंछ कर मैंने दिअरी बंद कर दी. मेरा मन जो पढ़ाई का बोझ उठाते-उठाते थक चुका था अब सशक्त हो गया क्यूंकि मुझे डोक्टारी की पढ़ाई पूरी करनी थी. किसी के लिए न सही पर " नैना" के लिए. बहार चल रही तेज़ हवा अब धीमी हो चुकी थी और मेरा मन भी शांत हो गया था. मोबाइल लेकर में बालकनी की ओर गई.



12 comments:

क्षितीश said...

bahut dinon baad aaya hun idhar... aur waqt bhi nahin itna ki padh paun tumhaare blog ko... fir kabhi... NAINA ka to main fan hun.. achha laga ise blog par dekhkar.

PD said...

कहानी बहुत अच्छी थी..
दिल के करीब..

Anonymous said...

Sorry.. Commented on wrong post.. I meant here, read what u write.. Haven't read complete.. Hope there is no change..

pallavi trivedi said...

अआपकी डायरी का एक आंसू भरा पन्ना आपने पढ़वाया...भावुक कर दिया!

डॉ .अनुराग said...

लेख भावुक कर गया .....इस पीड़ा को मैंने भी महसूस किया है.......हिन्दी में आपका लिखना मन को भाया ...ऐसे ही लिखती रहेगी उम्मीद है......

Power of Words said...

Thank u kshiteesh ji!! pata hai naina se to meri pehchaan hui aapse

Power of Words said...

Thanks Bhaiyya!! mujhe ye to umeed thi ki aap mera blog padhoge aaj!! :) hindi mein likhi hoon na!! aapke comments chahiye the

Power of Words said...

Harshit...

Thanks a ton... actually it is a wonder that i am getting a comment frm u!! kuch aise bhi hain jo tumne nahi padhe!! keep reading...

Power of Words said...

Thanks pallavi ji!

Power of Words said...

Dr. Anurag, ye aapke kehne par hi maine hindi mein kuch likha... likhti rahungi!!

Amit Pachauri (अमित पचौरी) said...

"मेरा मन जो पढ़ाई का बोझ उठाते-उठाते थक चुका था अब सशक्त हो गया क्यूंकि मुझे डोक्टारी की पढ़ाई पूरी करनी थी. किसी के लिए न सही पर " नैना" के लिए."

कहानी का अंत अच्छा है, सकारात्मक है । शायद नैना के लिए यही सबसे अच्छी श्रद्धांजली है ।

Amit Pachauri (अमित पचौरी) said...

"बहुत अच्छी ब्लॉग है पर मेरे सर से सब पार हो रहा है" ... पता नहीं अर्चना जी आपके इस कमेन्ट से खुश होऊँ या नहीं. परन्तु C-Box पर पहला कमेन्ट लिखने के लिए धन्यवाद. किसी ने इसका उपयोग तो किया. पर शायद आपको Gadgets और Widgets अधिक पसंद आये.