Monday, May 26, 2008

जाएँ तो कहाँ जाएँ?

आज कल कॉलेज में दाखिले की इतनी होड़ लगी है की मैं क्या बताऊँ? हर जगह यही आलाप , जाएँ तो कहाँ जायिएँ? ये बड़े शहरों में तो इतना नहीं दिकता पर छोटे शहर के बच्चे करें तो क्या करें?मैं अपने शहर जमशेदपुर की ही बात कहती हूँ, यहाँ बारवीं तक तो पढाई बहुत अच्छी है पर उसके बाद सारे बच्चों का दुसरे शहरों की और पलायन हो रहा है. XLRI , NIT के अलावे यहाँ और कोई अच्छे कॉलेज नहीं हैं. सारे अड्मीशन के चक्कर में इधर उधर की परीक्षा दे रहे हैं. मैं भी इस भीड़ में शामिल हूँ. ग्रादुंअएंशन ख़त्म हुआ तो क्या हुआ , आगे के लिए भी मुझे इधर- उधर भटकना पड़ रहा है. ऐसा सिर्फ यहाँ ही नहीं बल्कि उन तमाम छोटे शहरों में है जहाँ उच्च शिक्षा का कोई अच्छा सा माध्यम नहीं. ऐसे ही ज़िन्दगी चलती है और दिल मैं कुछ कर दिखाने का जज्बा लिए सब अपनी किस्मत आजमाते हैं. भगवान् करे इन सब का भला हो क्यूं की इन सब परीक्षाओं में क्षमता से ज्यादा किस्मत रंग लाती है.

बस ये सब देख कर एक गाने की दो पंक्तियाँ याद आती हैं :
" छोटे-छोटे शहरों से , खाली भोर-दोपहरों से;
हम तो झोला उठा के चले......."

4 comments:

PD said...

छोटे शहरों का एक अलग ही सच होता है, अलग ही सपना होता है.. छोटे शहरों में रहने वाले लोग अक्सर बड़े शहरों की ओर मुंह किये होते हैं.. हर किसी के मन में कहीं ना कहीं ये इच्छा होती है कि बड़े शहरों की ओर निकल कर कुछ अलग ढंग से जिंदगी गुजारी जाये.. मगर बड़े शहर में आने के बाद अपना छोटा सा शहर आपको नोस्टाल्जिक करता रहता है.. आप चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते हैं.. क्योंकि ये वन-वे रास्ता है.. जो गया वो जीवन के भाग-दौड़ से कभी नहीं छूट पाया..

वैसे अर्चू(अब भैया कहती हो तो मैंने भी अपनी छोटी बहन को एक अलग नाम दे दिया :)) तुम्हारा हिंदी में पोस्ट पढकर बहुत ही अच्छा लगा.. पहले मैं भी अंग्रेजी में लिखता था(सन् 2003 में) मगर जब हिंदी में लिखना सिखा तब से कभी अंग्रेजी की ओर पलट कर नहीं देखा.. सोचा की अंग्रेजी तो पूरे जीवन भर साथ रहेगा व्यवसायिक भाषा बन कर, तो हिंदी को क्यों भूला जाये.. एक बात बताओ, कहां से प्रेरणा मिली हिंदी में लिखने की??

डॉ .अनुराग said...

जुटी रहिये....आसमां उचक कर ही छुआ जा सकता है......

PD said...

अरे वाह.. डा. साहब आप!! आप यहां कहां से आ गये?? आपको इस ब्लौग का पता कहां से मिला?? :)

PD said...

पता है अर्चू.. मैं घर में सबसे छोटा हूं.. और बचपन से ही सोचता था की काश एक छोटी बहन होती.. सो कोई जो अपनी सी लगती है और भैया कहती है तो बस वो कुछ भी मांग ले.. सब उसके लिये हाजिर है.. :)
और तुमसे तो कालेज से भी जुड़ाव है.. आखिर कालेज में भी अगर हम मिलते तो या तो सर बोलती या भैया.. मगर तुमने मुझे भैया का नाम दे कर बस दिल जीत लिया.. :)