Sunday, December 28, 2008

ब्लड बैंक में दूसरा दिन

दूसरे दिन मुझे ब्लड कोल्लेक्शन सेक्शन में भेज दिया गया. वहां पे एक-एक कर लोग आते गए और मिनटों में रक्त दान भी पूरा हो गया. अभी तो ठण्ड में कोई आता ही नही ब्लड बैंक में. वहां काम ही नही था और काफ़ी ज़रूरत आन पड़ी थी .इस बार. ओ नेगेटिव और ऐ.बी पोसिटिव का कोई मिल ही नही रहा है. यहाँ सब को रक्त दान करते देख मेरा भी काफ़ी मन कर गया और मैंने वहां के डॉक्टर से पुछा. सबसे पहले उन्होंने मेरा ब्लड ग्रुप पुछा. जैसे ही मैंने अपना ब्लड ग्रुप बताया, उन्होंने मुझसे कहा, " अभी तुम रुको. ऐ नेगेटिव अभी किसी तो नही चाहिए. बेकार का क्यूँ अपना खून बरबाद कर रही हो. वैसे भी ३५ दिन बाद ये बेकार होगा. ऐ नेगेटिव ब्लड हम कभी ऐसे लेते नही. अगर मन तो दे दो पर किसी का भला नही होने वाला. "


इतना सुनने के बाद मैं थोड़ा निराश हो गई. हमेशा से यही होता आया है मेरे साथ. इसलिए मैं कभी भी किसी रक्त दान शिविर में भी भाग न ले पायी. कभी पापा ने मन किया तो कभी वहां के डॉक्टर ने. अब वही बात फिर से सुन रही थी. सोचा ठीक है जब किसी को मेरी ज़रूरत होगी तो देखा जाएगा.


न जाने इश्वर को क्या मंज़ूर था. उसी दिन जाब में लंच के बाद वापस आई तो डॉक्टर साहब ने मुझे बुलाया और पुछा, " पक्का तुम्हारा ऐ नेगेटिव है ना? मैंने जवाब दिया, " हाँ मैंने तो हॉस्पिटल में करवाया था और ख़ुद भी कई बार लैब में किया है. ""अच्छा ठीक है चलो फिर कन्फर्म करना है," डॉक्टर साहब ने कहा."क्यूँ डॉक्टर , एनी रेकुइरेमेन्ट?"मैंने पुछा."हाँ, किसी को अभी चाहिए. सीरियस केस है," डॉक्टर ने मेरा टेस्ट करते हुए कहा.

देखते ही देखते मेरा हेमोग्लोबिन चेक किया गया और कंसेंट फॉर्म भरवाया गया. सारे फॉर्मेलिटीज़ पूरे हुए और मैं भी उसी सीट पर लेते हुए रक्त दान कर रही थी. मैं पेहली बार दे रही थी तो २ डॉक्टर मेरे साथ थे. जाब वो १६ इंच सुई मेरे डीप वें म, मुझे ये एहसास हुआ की मेरे अंग से कुछ जा रहा है. उस रक्त की गति को महसूस कर रही थी मैं और ये सोच कर खुश हो रही थी की जिस किसी को भी मेरा रक्त मिले उसकी ज़िन्दगी बच जाए.

सारे कर्मचारी वहां आ गए. काम तो नही था कुछ उनके पास. सारे बड़े खुश हुए की आज उन्हें खून के लिए इधर-उधर भटकना नही पड़ा. बस कुछ ही देर में ३५० मल ब्लड चला भी गया, पर जाब प्रेशर cuff रिलीज़ किया तो मेरा हंत सुन पड़ गया. मैंने मनुअल में लिखा हुआ था किस रक्त दान के बाद काफ़ी सारे एफ्फेक्ट्स होते हैं पर आज महसूस भी किया. मुझे तो कुछ हुआ नही पर हाँ थोडी सी ठंडी पड़ गई. फिर डॉक्टर साहब ने समझ कर मुझे बातों में उलझा दिया और मैं उस इफेक्ट से भी बहरा आ गई.

बस देखते ही देखते मेरे ही खून का टेस्ट भी किया मैंने ख़ुद और अपने ही हातों से उसे उसे फ्रीज में भी रखा.आज जो आनंद मुझे मिला शायद ही किसी काम को करके आया होगा.



Wednesday, December 24, 2008

खून के लिए तरसती दुनिया

ब्लड बैंक में पेहला दिन

खून की प्यासी इस ज़मीन पर अगर एक बूँद 'रक्त' की मिल जाए तो क्या कहने????

आप सब सोच रहे होंगे की मैंने ऐसा क्यूँ कहा? सच ही तो है! आज कल दुनियाँ में जो चल रहा है, बढ़ते हुए दंगे-फसाद ............ क्या कहूँ???हर जगह लहू ही बह रहा है. ऐसा ही कुछ मुझे भी दिखा ... मेरी हाल में जमशेदपुर ब्लड बैंक में ट्रेनिंग शुरू हुई. पहले दिन मुझे काउंटर पे बैठा दिया गया. वहां एक आंटी भी थी. पहले दिन तो बस मरीजों को घर वालों से मुलाकात हो रही थी. कोई अनेमिया पीड़ित है, किसी का एक्सीडेंट हो गया, किसी को कैंसर है या फिर कोई खुशी-खुशी रक्त दान करने आया है. ऐसे ही लोग आते गए. कुछ गरीब किसान भी थे जो पास को जिले से आए थे. कोई खून की भरपाई करने आया था तो किसी को ५-६ बोतल खून की सकत ज़रूरत थी. अब ब्लड बैंक में ऐसा महिना था की नेगेटिव ब्लड ग्रौप्स मिल हि नही रहे थे. बहुतों को खली हंत लौटना पड़ा या फिर किसी एक ऐसे व्यक्ति को ढूँढ लाये जो रक्त दान कर साके.

इतने में काउंटर पर एक आदमी आया. देखने में तो किसान लग रहा था पर कुछ पुछा नही किसी ने उससे. उसने हडबडा कर कहा, " मैडम मैं भतीजे को ले आया. ये खून देगा."मेरे साथ बैठी आंटी ने हँसते हुए कहा, " देख को तो भतीजा नही लगता. देखना कहीं से प्रोफेशनल ले को ले आया है."


मैंने कुछ कहा नही बस तमाशा देख रही थी. इतने में दूसरे अंकल आए और उसे भतीजे से पूछताछ शुरू की.
अंकल : पहले कभी खून दिया है?
भतीजा: सर हिलाता है.. बोलता नही ..
अंकल: अच्छा, अपना नाम बताओ?
भतीजा: चुप रहता है.
इतने में पीछे से उसका चाचा बोलता है.. " नीरज टुडू."
अंकल: अच्छा पिताजी का नाम?फिर से चाचा बोल पड़ा और भतीजा मुह तानकता रहा.
अंकल:(गुस्से में) अबे..क्या बोलना नही आता क्या? खून तुम दे रहा है या तुम्हारा चाचा?
फिर भी लड़के ने कुछ नही कहा. मुझे हँसी भी आ रही थी.
इतने में अंकल ने उस लड़के को चाचा से पुछा, " आप खून क्यूँ नही दे रहे? आप तो सही दीखते हैं.
"चाचा ने कहा, " डॉक्टर sahab मन किए है. मुझे मिर्गी है."
अंकल : अच्छा यहाँ को कौन डॉक्टर बोलेन ज़रा जांच कराएँ तो.....

इतने में दोनों चाचा-भतीजे की हालत ख़राब होने लगी. काफ़ी देर तक तहकीकात होने को बाद पता चला की वो कोई भतीजा नही था. कहीं से उस गरीब किसान को मिल गया एक प्रोफेशनल ले और न जाने उससे कितने पैसे ऐंठ लिया होगा .

काउंटर पर बैठी आंटी जी ने मुझसे कहा, " देखा बेटा . १६ साल का तजुर्बा है. मेरी आन्ह्कें धोखा नही का सकती."

इस किस्से को बाद मैं कुछ कह न पायी. बस इसी सोच में पड़ी रही की मजबूरी में लोग क्या-क्या कर
बैठते हैं . अब नौबत ऐसी आन पड़ी की रक्त दान के लिए प्रोफ़ेस्सिओनल्स घूमते हैं जो गरीबों से पैसे ऐंठे रहे हैं .

Friday, December 5, 2008

Nature Speaks

THE SKY IS SMILING AT US


On 1st of Decemeber 2008, at about 7:00PM, when the sky was pitch dark, I came out of my house and saw the sky smiling at me. I removed my glasses, rubbed my eyes and looked again. Yes, it was the sky smiling at me. We often tend to see images in the sky and according to our imagination we describe them but this time it was real.


There were 2 planets adjacent to each other and vertically down in the center was the moon, in the shape of a cusp(half cusp). This looked an emoticon- A Smiley that we all use daily to emote our happiness.


The image was perfect but each time I tried to capture it, I couldn't. I desparately wanted a good camera which could capture such a rare occurence. I managed to get a camera phone and asked my friend to click one for me. The pictures were not so clear though.
Isn't it an expression of Nature???





The unique feature in VIT


The only college I know of, that is separated by a train track, that is VIT. Life can come to a stand still but the trains cannot. They keep moving to and from Chennai to Bangalore and it's a wonderful view. The rumbling sound of the trains makes the place lively.


In moments when I felt lonely, the rumbling sound made my those wheels on the track, made me feel that there was not at end to life. It was irritating initially but at the end of three years it became a part of life.



If someone would ask me what I miss the most, my reply would be : ' I miss watching the train and hearing the whistel.'








Tuesday, December 2, 2008

The major difference


The striking feature in my compare and contrast topics is that I did my graduation from an engineering college , where students from Science and Humanities were a minority but I am doing my post-graduation from a medical college. We rule here and Bio-Science field is considered to be the top most here. The whole atmosphere has changed and even the importance given to the post graduate students is commendable. We are made to behave as PG students. I feel so proud to walk in a crowd amongst my fellomates, wearing labcoats. What I see around me is, the colour white that is predominant. After a long time there was a sense of satisfaction after wearing labcoat.