Wednesday, December 24, 2008

खून के लिए तरसती दुनिया

ब्लड बैंक में पेहला दिन

खून की प्यासी इस ज़मीन पर अगर एक बूँद 'रक्त' की मिल जाए तो क्या कहने????

आप सब सोच रहे होंगे की मैंने ऐसा क्यूँ कहा? सच ही तो है! आज कल दुनियाँ में जो चल रहा है, बढ़ते हुए दंगे-फसाद ............ क्या कहूँ???हर जगह लहू ही बह रहा है. ऐसा ही कुछ मुझे भी दिखा ... मेरी हाल में जमशेदपुर ब्लड बैंक में ट्रेनिंग शुरू हुई. पहले दिन मुझे काउंटर पे बैठा दिया गया. वहां एक आंटी भी थी. पहले दिन तो बस मरीजों को घर वालों से मुलाकात हो रही थी. कोई अनेमिया पीड़ित है, किसी का एक्सीडेंट हो गया, किसी को कैंसर है या फिर कोई खुशी-खुशी रक्त दान करने आया है. ऐसे ही लोग आते गए. कुछ गरीब किसान भी थे जो पास को जिले से आए थे. कोई खून की भरपाई करने आया था तो किसी को ५-६ बोतल खून की सकत ज़रूरत थी. अब ब्लड बैंक में ऐसा महिना था की नेगेटिव ब्लड ग्रौप्स मिल हि नही रहे थे. बहुतों को खली हंत लौटना पड़ा या फिर किसी एक ऐसे व्यक्ति को ढूँढ लाये जो रक्त दान कर साके.

इतने में काउंटर पर एक आदमी आया. देखने में तो किसान लग रहा था पर कुछ पुछा नही किसी ने उससे. उसने हडबडा कर कहा, " मैडम मैं भतीजे को ले आया. ये खून देगा."मेरे साथ बैठी आंटी ने हँसते हुए कहा, " देख को तो भतीजा नही लगता. देखना कहीं से प्रोफेशनल ले को ले आया है."


मैंने कुछ कहा नही बस तमाशा देख रही थी. इतने में दूसरे अंकल आए और उसे भतीजे से पूछताछ शुरू की.
अंकल : पहले कभी खून दिया है?
भतीजा: सर हिलाता है.. बोलता नही ..
अंकल: अच्छा, अपना नाम बताओ?
भतीजा: चुप रहता है.
इतने में पीछे से उसका चाचा बोलता है.. " नीरज टुडू."
अंकल: अच्छा पिताजी का नाम?फिर से चाचा बोल पड़ा और भतीजा मुह तानकता रहा.
अंकल:(गुस्से में) अबे..क्या बोलना नही आता क्या? खून तुम दे रहा है या तुम्हारा चाचा?
फिर भी लड़के ने कुछ नही कहा. मुझे हँसी भी आ रही थी.
इतने में अंकल ने उस लड़के को चाचा से पुछा, " आप खून क्यूँ नही दे रहे? आप तो सही दीखते हैं.
"चाचा ने कहा, " डॉक्टर sahab मन किए है. मुझे मिर्गी है."
अंकल : अच्छा यहाँ को कौन डॉक्टर बोलेन ज़रा जांच कराएँ तो.....

इतने में दोनों चाचा-भतीजे की हालत ख़राब होने लगी. काफ़ी देर तक तहकीकात होने को बाद पता चला की वो कोई भतीजा नही था. कहीं से उस गरीब किसान को मिल गया एक प्रोफेशनल ले और न जाने उससे कितने पैसे ऐंठ लिया होगा .

काउंटर पर बैठी आंटी जी ने मुझसे कहा, " देखा बेटा . १६ साल का तजुर्बा है. मेरी आन्ह्कें धोखा नही का सकती."

इस किस्से को बाद मैं कुछ कह न पायी. बस इसी सोच में पड़ी रही की मजबूरी में लोग क्या-क्या कर
बैठते हैं . अब नौबत ऐसी आन पड़ी की रक्त दान के लिए प्रोफ़ेस्सिओनल्स घूमते हैं जो गरीबों से पैसे ऐंठे रहे हैं .

3 comments:

उन्मुक्त said...

मेरे भी अनुभव कुछ इसी तरह के हैं।

हिन्दी में और भी लिखिये।

PD said...

मुझे तो अपने सी.एम.सी. के किस्से याद हैं.. कैसे कई बार कुछ लोग हमसे रक्तदान के लिये कहते थे और जब हम उनसे कहते थे कि आपका रिश्तेदार है आपकी जिम्मेवारी पहले बनती है सो आप लोग क्यों नहीं रक्तदान कर रहे हैं तो बहाने बना कर निकल जाते थे..
अंत में जब हम देखते थे कि भले ही उनका रिश्तेदार मर जाये मगर फिर भी वे रक्तदान नहीं करने वाले हैं तो हमे ही रक्तदान करना परता था..

डॉ .अनुराग said...

अच्छा लगा तुम इस तरह हिन्दी में लौटकर आयी ....दुर्भाग्य से इस देश की बड़ी जनसँख्या २० रूपये कम दिहाडी में अपनी गुजर बसर करती है